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श्री सोमनाथ चटर्जी

प्रत्यक्षतः निर्वाचित लोक सभा के पीठासीन अधिकारी के रूप में अध्यक्ष भारत की संसदीय प्रणाली में सर्वोच्च संवैधानिक पद धारकों में से एक होता है। संसद के निचले सदन की कार्यवाही का संचालन अध्यक्ष द्वारा कितने कौशल और प्रभावी ढंग से किया जाता है इस बात पर लोगों की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर आस्था टिकी रहना निर्भर करता है। विगत में भारतीय संसद के कई प्रमुख अध्यक्ष हुए हैं, जिन्होंने अध्यक्षपीठ को गरिमा और सम्मान प्रदान किया है। श्री सोमनाथ चटर्जी 4 जून, 2004 को इस सम्माननीय पद के लिए निर्विरोध निर्वाचित होकर अध्यक्षों के दीप्ति मंडल में सम्मिलित हुए। जैसाकि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा है कि अध्यक्ष राष्ट्र, उसकी स्वतंत्रता और आजादी का प्रतिनिधित्व करता है।

25 जुलाई, 1929 को श्री एन.सी. चटर्जी और श्रीमती वीणापाणि देवी के सुपुत्र के रूप में तेजपुर, असम में जन्मे श्री चटर्जी की शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता और युनाइटेड किंगडम में हुई। उन्होंने स्नातकोत्तर (कैंटब) तथा यू.के. में मिडिल टैंपल से बैरिस्टर-एट-लॉ किया। श्री चटर्जी की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती रेणु चटर्जी है। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं।

राजनीतिक जीवन

श्री सोमनाथ चटर्जी ने एक अधिवक्ता के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की तथा 1968 में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी के सदस्य बनने के बाद सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। राष्ट्रीय राजनीति में उनका अभ्युदय प्रथम बार 1971 में लोक सभा के लिए निर्वाचित होने के साथ हुआ। तब से लेकर उन्होंने सभी लोक सभाओं में एक सदस्य के रूप में निर्वाचित होकर सेवा की है, वर्ष 2004 में वर्तमान 14वीं लोक सभा में वे दसवीं बार निर्वाचित हुए। वर्ष 1989 से 2004 तक वे लोक सभा में सीपीआई(एम) के नेता रहे। लोक सभा चुनाव में उनकी बारंबार अधिक मतों के साथ विजय जनता के बीच उनकी लोकप्रियता, पार्टी में उनके स्थान तथा सांसद के रूप में उनके कद्दावर व्यक्तित्व को प्रमाणित करता है।

एक सांसद के रूप में

संसदीय लोकतंत्र में आबद्धकारी आस्था के साथ श्री सोमनाथ चटर्जी ने साढ़े तीन दशकों तक एक विशिष्ट सांसद के रूप में सेवा की। एक प्रखर वक्ता तथा एक प्रभावी विधायक के रूप में उन्होंने अपने लिए एक अलग स्थान बनाया। भारत की संसदीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में उनके अपरिमित व अमूल्य योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें वर्ष 1996 में "उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार" प्रदान किया गया। वर्ष 1971 से महत्वपूर्ण विषयों पर वाद-विवाद में भाग लेकर उन्होंने सदन में विचार-विमर्श में समृद्ध योगदान दिया। श्री चटर्जी ने कामगार वर्ग तथा वंचित लोगों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। उनका वाद-विवाद कौशल, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ तथा जिस हास्य विनोद के साथ सदन में वे अपना दृष्टिकोण रखते थे जिन्हें सभा दतचित्त होकर सुनती थी वे उन्हें एक सुविख्यात सांसद बनाते हैं।

सभा में उनके द्वारा दिए गए भाषण कार्यवाही संचालन के विनियामक नियमों और विनियमों पर एक अधिवक्ता के पांडित्य को प्रकट करते हैं। अपने पूरे संसदीय जीवन में उन्होंने सदन की गरिमा को बढ़ाने वाले मूल्यों तथा परम्पराओं का निर्वहन करने तथा संसद की संस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने में एक उदाहरण प्रस्तुत किया। श्री चटर्जी ने सभापति तथा सदस्य के रूप में अनेक संसदीय समितियों की शोभा बढ़ायी। उन्होंने अधीनस्थ विधान संबंधी समिति तथा सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी समिति (2 कार्यकाल), विशेषाधिकार समिति, रेल संबंधी समिति, संचार संबंधी समिति (3 कार्यकाल) की विशिष्टता सहित अध्यक्षता की। वे कई समितियों के सदस्य रहे हैं जिनमें से कुछ एक नियम समिति, सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति, कार्य मंत्रणा समिति आदि हैं। वे अनेक संयुक्त समितियों तथा प्रवर समितियों विशेषतः विधि के क्षेत्र में विशेषज्ञता की आवश्यकता वाली समितियों से सम्बद्ध रहे। एक बैरिस्टर तथा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में उन्होंने सदन तथा इसकी समितियों दोनों ही जगहों पर विधान के क्षेत्र में अपनी कानूनी सिद्धहस्तता का प्रयोग किया। .

लोक सभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन

4 जून, 2004 को 14वीं लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में श्री सोमनाथ चटजी का सर्वसम्मति से निर्वाचन कर सदन एक इतिहास रच रहा था। प्रथम बार सामयिक अध्यक्ष का लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन किया जा रहा था। 4 जून, 2004 को कांग्रेस पार्टी की नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने अध्यक्ष के रूप में श्री सोमनाथ चटर्जी के निर्वाचन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। रक्षा मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। यह महत्वपूर्ण है कि लोक सभा में 17 अन्य दलों के नेताओं ने भी इनके नाम का प्रस्ताव किया जिसका समर्थन अन्य दलों के नेताओं द्वारा किया गया। जब विचार और मतदान हेतु इस प्रस्ताव को सदन के समक्ष रखा गया तब सभा ने सर्वसम्मति से इसे स्वीकार किया तथा श्री सोमनाथ चटर्जी निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित किए गए।

अध्यक्ष के इस प्रतिष्ठित पद पर निर्वाचित होने पर श्री चटर्जी को बधायी देते हुए प्रधान मंत्री, विपक्ष के नेता तथा लोक सभा में सभी राजनैतिक दलों के नेताओं ने देश में संसदीय लोकतंत्र की उच्च परंपराओं, जिनके विकास में उन्होंने काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है, को बनाए रखते हुए सभा की कार्यवाही को निष्पक्ष और गौरवपूर्ण तरीके से चलाने की उनकी योग्यता में विश्वास व्यक्त किया।

स्वागत समारोह का उत्तर देते हुए श्री सोमनाथ चटर्जी ने कहाः

अध्यक्ष के रूप में

अध्यक्ष के रूप में श्री सोमनाथ चटर्जी लोक सभा तथा समस्त संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता के प्रतीक हैं।

श्री सोमनाथ चटर्जी ने सभा की कार्यवाही के संचालन को सुधारने में पहल की और उन्होंने इस संबंध में कई महत्वपूर्ण विनिर्णय और निर्णय दिए। 22 जुलाई, 2008 को विश्‍वास मत के दौरान किए गए सभा के संचालन के लिए उनको देश के विभिन्‍न वर्गों के नागरिकों तथा विदेशों से काफी सराहना मिली।

सभा में महत्वपूर्ण मुद्दो पर सुव्यवस्थित वाद-विवाद सुनिश्चित करने के लिए श्री चटर्जी सभी सत्रों से पहले और सत्र के दौरान राजनैतिक दलों के नेताओं के साथ नियमित रूप से बैठकें करते रहे हैं। दुराचरण के मामलों सहित कई महत्वपूर्ण मामले विशेषाधिकार समिति को सौंपे गए , जिनके परिणामस्वरूप संसद सदस्य निष्कासित और निलंबित हुए हैं। अध्यक्ष की पहल पर ही संसद सदस्यों को दुराचरण और समय-समय पर होने वाले अन्य संबंधित मुद्दों के आरोपों की जांच के लिए एक विशेष समिति गठित की गयी।

उन्होंने राज्य सभा के सभापति के साथ परामर्श करके समिति के दौरों संबंधी नियमों को संशोधित किया। अंतरराष्ट्रीय दौरों, सम्मेलनों और संसदीय शिष्टमंडल के विदेशी दौरों संबंधी प्रतिवेदनों को अब सभा पटल पर रखा जाता है।

श्री चटर्जी ने राज्य विधान सभाओं के नव निर्वाचित सदस्यों के प्रशिक्षण तथा प्रबोधन में सक्रिय रूचि ली है। राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को नियमित रूप से संबोधित करने के अतिरिक्त उन्होंने मध्य प्रदेश विधान सभा (भोपाल/21 जून, 2004); राजस्थान विधान सभा (जयपुर/2 जुलाई, 2004); महाराष्ट्र विधान सभा (नई दिल्ली/2-4 मार्च, 2005; केरल विधान सभा (तिसुर/7 अगस्त, 2005); बिहार विधान सभा (पटना/6-7 फरवरी, 2006) के नव निर्वाचित सदस्यों को संबोधित किया है। इन्होंने संसद तथा राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के विधान मंडलों की सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति के अध्यक्षों (नई दिल्ली/31 अक्तूबर, 2006) को भी संबोधित किया है।

श्री चटर्जी को क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्व के समसामयिक विषयों पर विशिष्ट सभाओं को संबोधित करने के लिए देश के कोने-कोने से आमंत्रित किया है। इन्होंने द डेल्ही युनियन आफ जर्नलिस्ट को "पार्लियामेंट, प्रेस एंड द पीपल" पर सेमिनार (नई दिल्ली/23 फरवरी, 2005); शांति तथा लोकतंत्र संबंधी पाकिस्तान-भारत फोरम के सातवें संयुक्त सम्मेलन (नई दिल्ली/25 फरवरी, 2005); दिल्ली विश्वविद्यालय को "ए डायलाग आन नार्थ-ईस्ट" विषय पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय बैठक (नई दिल्ली/2 मार्च, 2005); जनसंख्या और विकास पर 22वीं एशियाई संसदीय बैठक (नई दिल्ली/23 अप्रैल, 2006); साउथ एशियन फाउंडेशन तथा विचार न्यास द्वारा आयोजित नेपाल पर सेमिनार (नई दिल्ली/22 मई, 2006); पुस्तक विमोचन कार्यक्रम, "कश्मीर, विरासत अथवा सियासत "(नई दिल्ली/26 मई, 2006); एशिया में एवियन इन्फ्लुंजा नियंत्रण तथा पैंडेमिक प्रिपेयर्डनेस पर स्वास्थ्य, कृषि/पशुधन मंत्रियों के सम्मेलन (नई दिल्ली/28 जुलाई, 2006) को संबोधित किया।

श्री चटर्जी ने विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं तथा संस्थानों द्वारा आयोजित समारोहों में व्याख्यान दिया है। उन्होंने नवें जे आर डी टाटा स्मारक व्याख्यान में "टुवार्डस पोपुलेशन स्टैबिलाइजेशन; रोल आफ गुड गवर्नेंस" विषय पर; छठे डी पी कोहली स्मारक व्याख्यान (नई दिल्ली/28 अप्रैल, 2005) में " पार्लियामेंटरी डेमोक्रेसी इन इंडिया-प्रेजेंट एंड फ्यूचर " पर; दूसरे नाना पालकीवाला व्याख्यान (नई दिल्ली/12 मई, 2005) में " द स्कीम आफ सेपरेशन आफ पावर्स एंड चेक्स एंड बैलेंसस इन द कंस्टीटय़ूशन " पर; वी के कृष्ण मेनन स्मारक व्याख्यान (एर्नाकुलम/6 अगस्त, 2005) में "मेकिंग डेमोक्रेसी रेलीवेंट फार द कॉमन मैन" पर; आंध्र प्रदेश विधान सभा के स्वर्ण जयंती समारोह (हैदराबाद/3 दिसम्बर, 2005) में "रोल आफ पार्लियामेंटरी डेमोक्रेसी इन स्ट्रेंग्थेनिंग द नेशन" पर; दिल्ली विश्वविद्यालय व्याख्यान माला (नई दिल्ली/8 मार्च 2006) के प्रथम व्याख्यान में "चैलेंजेज बिफोर इंडियन डेमोक्रेसी" पर; नवें जी वी मावलंकर स्मारक व्याख्यान (नई दिल्ली/24 अगस्त, 2006) में "जुडिशियरी एंड लेजिस्लेचर अंडर द कंस्टीटय़ूशन" पर; कर्नाटक राज्य के राज्योत्स्व दिवस तथा कर्नाटक उच्च न्यायालय की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर "जस्टिस डिलीवरी सिस्टमःइश्युज एंड प्रोब्लमस" (बंगलौर, 1 नवम्बर, 2006) पर; आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय, हैदराबाद के स्वर्ण जयंती समारोहों के समापन समारोह (4 नवम्बर, 2006); अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में "लॉ एंड सोशल चेंज" पर डा0 अम्बेदकर स्मारक व्याख्यान (अलीगढ़/24 फरवरी, 2007); ग्रामीण प्रबंध संस्थान, आणंद, गुजरात के 26वें वार्षिक दीक्षांत-समारोह में "रूरल इंडियाःडेवलपमेंट चैलेंजेज" (आणंद, गुजरात/3 अप्रैल, 2007); "सेपरेशन आफ पावर्स एंड ज्युडिशियल एक्टिविज्म इन इंडिया " पर डा. के एन काटजू स्मारक व्याख्यान (नई दिल्ली/26 अप्रैल, 2007); वेस्ट बंगाल नेशनल युनिवर्सिटी आफ ज्युडिशियल साइंसेज के दूसरे वार्षिक दीक्षांत समारोह संबोधन में (कोलकाता/23 जून, 2007); शरत चंद्र बोस स्मारक व्याख्यान में "इंडिया एट सिक्सटीअचीवमेंट्स एंड चैलेंजेज" (कोलकाता/1 सितम्बर, 2007) पर भाषण दिया।

संसदीय कूटनीति

अनेक देशों की यात्रा कर चुके श्री चटर्जी कई सरकारी और संसदीय शिष्टमंडलों के सदस्य रहे हैं। अध्यक्ष के रूप में इन्होंने जेनेवा में आई पी यू की 111वीं सभा (28 सितम्बर-1 अक्तूबर, 2004), मनीला में "महिलाओं की स्थिति पर घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय नीतियों का प्रभाव" पर आई पी यू की 112वीं सभा (3-8 अप्रैल, 2005); जेनेवा में आई पी यू की 113वीं सभा (17-19 सितम्बर, 2005); जेनेवा में आई पी यू की 115वीं सभा (16-18 अक्तूबर, 2006) में भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया है। इन्होंने कनाडा में 50वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन (31 अगस्त-1 सितम्बर, 2004); नादी, फिजी आइलैण्ड्स में 51वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन, 1-10 सितम्बर, 2005; अबुजा, नाइजीरिया में 52वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन, (1-10 सितम्बर, 2006); नैरोबी में राष्ट्रमंडल अध्यक्षों तथा पीठासीन अधिकारियों के 18वें राष्ट्रमंडल सम्मेलन (3-8 जनवरी, 2006); आइजल आफ मैन में सी पी ए मध्यवार्षिक कार्यकारी समिति बैठक, (3-6 मई, 2006); फिनलैंड के हेलसिंकी में संसदीय सुधारों की 100वीं वर्षगांठ (1-4 जून , 2006); सीपीए/िवल्टन पार्क सम्मेलन, लंदन (5-9 जून, 2006); सायप्रस में मध्यवार्षिक सीपीए कार्यकारी समिति (16-20 अप्रैल, 2007) में भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया। इन्होंने जापान (1-8 नवम्बर, 2004); त्रिनिदाद एवं टोबैगो, तुर्की, जर्मनी (31 मई से 13 जून, 2005); जनवादी गणराज्य चीन (3-8 जुलाई, 2006) तथा ग्रीस (25-28 सितम्बर, 2006), सउदी अरब (9-13 फरवरी, 2007) तथा वियतनाम (22-28 मार्च, 2007) में भारतीय संसदीय शिष्टमंडलों का नेतृत्व किया। चीन यात्रा के दौरान भारतीय संसद ने चीन की संसद के साथ प्रथम समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जिसमें संसदीय लेनदेन एवं सहयोग को बढ़ाने के लिए समझौता किया गया है। विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने, महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों यथा राष्ट्रमंडल संसदीय एसोसिएशन (सीपीए), अंतर्संसदीय संघ (आईपीयू) तथा अन्य सेमिनारों एवं कार्यशालाओं में प्रस्तुतिकरणों की गुणवत्ता में सुधार के लिए माननीय अध्यक्ष महोदय द्वारा विशेष प्रयास किए गए हैं।

मुख्यतः लोक सभा के माननीय अध्यक्ष द्वारा किए गए विशेष कूटनीतिक प्रयासों के कारण पश्चिम बंगाल विधान सभा के अध्यक्ष हाशिम अब्दुल हलीम को 2 सितम्बर, 2005 को सीपीए सम्मेलन, नादी (फिजी) में 3 वर्ष के कार्यकाल के लिए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की कार्यकारी समिति का अध्यक्ष भारी बहुमत से चुना गया। किसी भारतीय प्रतिनिधि को यह सम्मान 20 वर्षों के बाद प्राप्त हुआ। इसके साथ ही लोक सभा के माननीय अध्यक्ष को नादी (फिजी) में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का उपाध्यक्ष चुना गया तथा भारत को 53वें सीपीए सम्मेलन की मेजबानी करने का सम्मान प्राप्त हुआ।

सितम्बर 2006 में श्री चटर्जी को अबुजा, नाइजीरिया में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का अध्यक्ष चुना गया। उनके नेतृत्व तथा समर्थ दिशानिर्देश में भारत ने सितम्बर, 2007 के दौरान नई दिल्ली में 53वें सीपीए सम्मेलन की सफलतापूर्वक मेजबानी की जिसमें 52 देशों को विविध क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों से अवगत कराया गया। श्री चटर्जी ने जेनेवा (5-10 अक्तूबर, 2007) में अंतर्संसदीय संघ की 117वीं सभा में भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया।

मैत्री दल

आज की स्थिति के अनुसार अन्य देशों की संसदों के साथ 57 मैत्री दल गठन/पुनर्गठन किए जाने के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से 33 दलों यथा चीन, जर्मनी, मंगोलिया, रूस, वियतनाम, ग्रीस आदि का उनके पदाधिकारियों की नियुक्ति सहित औपचारिक रूप से गठन कर दिया गया है। इन मैत्री समूहों का मुख्य उद्देश्य उनके तथा अन्य देशों में उनके समकक्षों के साथ संपर्कों तथा परस्परक्रियाओं में वृद्धि करना है। परस्परक्रिया के मानदंड विदेश मंत्रालय के परामर्श से तैयार किए गए हैं। इन मैत्री दलों को अब दूसरे देशों के उच्च पदाधिकारियों की भारत यात्राओं के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों के साथ सम्बद्ध किया जाता है, जो कि पहले नहीं किया जाता था।

सदन की कार्यवाही का टेलीविजन पर प्रसारण

श्री चटर्जी की पहल पर "शून्यकाल" की कार्यवाही का 5 जुलाई 2004 से सीधा प्रसारण किया जा रहा है। श्री चटर्जी का मानना है कि यह कदम लोगों के जानने के अधिकार के स्वीकरण में शुरू किया गया है, इसका उद्देश्य सदस्यों को अनुशासित करना नहीं था, न ही उनका ऐसा मानना है कि इससे संसद की आलोचना होगी। संसदीय कार्यवाही को अधिक व्यापक मीडिया कवरेज प्रदान करने के लिए 24 जुलाई 2006 से पूरे 24 घंटे के लिए लोक सभा का एक टेलीविजन चैनल शुरू किया गया है। इसके परिणामस्वरूप सभा की दर्शक दीर्घा का विस्तार वास्तव में पूरे देश में हो गया है तथा इससे लोगों के संसद के निकट आने की आशा की जाती है। विश्व में यह अपने आप में अकेला प्रयास है।

सरकार का कारगर निरीक्षण

विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (डीआरएससी) के कार्यकरण के संबंध में श्री चटर्जी ने एक और महत्वपूर्ण पहल की है। निदेश 73क में यह प्रावधान किया गया है कि संबंधित मंत्री छः महीने में एक बार लोक सभा की विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (डीआरएससी) के प्रतिवेदनों में निहित सिफारिशों के कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में अपने मंत्रालय के संबंध में एक वक्तव्य देगा। इससे समितियों की सिफारिशों, जो कि सामान्यतया एकमत से की जाती हैं, के कार्यान्वयन में काफी सहायता मिली है। 14वीं लोक सभा के दौरान "ध्यानाकर्षण प्रस्तावों" तथा "स्थगन प्रस्तावों" की संख्या में सुस्पष्ट वृद्धि हुई है। 14वीं लोक सभा के दौरान आज की तिथि तक कुल 103 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव और 7 स्थगन प्रस्ताव लाए गए हैं।

माननीय अध्यक्ष महोदय ने इस बात की वकालत की कि स्वयं सदस्यों को अपने वेतन और भत्तों के संबंध में सुझाव नहीं देना चाहिए और यह कार्य एक स्वतंत्र आयोग द्वारा किया जाना चाहिए। सभी दलों के नेताओं ने इस सुझाव का समर्थन किया। तदनुसार समय समय पर माननीय सदस्यों के वेतन और भत्तों के निर्धारण के लिए संस्थागत तंत्र बनाने के लिए प्रधानमंत्री के पास एक प्रस्ताव भेजा गया। इस प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है।

लोक सभा सचिवालय में प्रशासनिक सुधार

माननीय अध्यक्ष महोदय की पहल पर जनशक्ति की आवश्यकता का पुनःनिर्धारण करने, उनकी प्रभावी तैनाती, बेहतर कैरियर संभावनाओं की रूप रेखा तैयार करने और कार्यात्मक दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढाने की दृष्टि से लोक सभा सचिवालय में विभिन्न सेवाओं की व्यापक संवर्ग समीक्षा प्रारंभ की गयी है। सचिवालय के प्रशासनिक तंत्र को सशक्त बनाने और वास्तविक विकेंद्रीकरण को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से माननीय अध्यक्ष महोदय ने प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां महासचिव को प्रत्यायोजित कर दी है। कर्मचारियों की सेवा संबंधी समस्याओं पर खुलकर विचार विमर्श करने और उनके समाधान के लिए 2005 में एक शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना की गयी है। तदर्थवाद से बचने के लिए कर्मचारियों के स्थनांतरण नीति निरूपित की गयी है।

मीडिया के साथ संवाद

माननीय अध्यक्ष महोदय सत्र प्रारंभ होने से पूर्व और इसके पश्चात मीडिया के साथ नियमित रूप से बैठकें करते रहे हैं। ये बैठकें सभा की कार्यवाही से संबंधित विविध मुद्दों की व्याख्या करने और उन्हें स्पष्ट करने में विशेष रूप से उपयोगी रही हैं। संसद की प्रेस दीर्घा के लिए प्राधिकृत मीडिया कर्मियों के लिए संसदीय अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो (बीपीएसटी) द्वारा प्रबोधन कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है और इन कार्यक्रमों की अत्यधिक सराहना की गयी है। प्रेस सलाहकार समिति को विभिन्न राज्यों की समकक्ष समितियों को शामिल करते हुए राष्ट्रीय संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।

भारत की लोकतांत्रिक विरासत पर प्रकाश डालना

श्री चटर्जी द्वारा एक अन्य महत्वपूर्ण पहल भारत की लोकतांत्रिक विरासत पर अत्याधुनिक संसदीय संग्रहालय की स्थापना है। भारत में राष्ट्रपति द्वारा 14 अगस्त 2006 को इस संग्रहालय का उद्घाटन किया गया। इस संग्रहालय में भारतीय लोकतंत्र के उदभव के विभिन्न चरणों को सुबुद्वतापूर्वक प्रस्तुत किया गया है। यह संग्रहालय जनता के दर्शनार्थ खुला है और विद्यार्थियों के लिए तो यह विशेष आकर्षण है।

संसदीय मंच

2005-06 में पहली बार (एक) जल संरक्षण तथा प्रबंधन (दो) बाल (तीन) युवा तथा (चार) जनसंख्या और जन स्वास्थ्य से संबंधित मंचों की स्थापना की गयी थी ताकि संसद सदस्यों को जल संरक्षण तथा प्रबंधन, बाल, युवा तथा जनसंख्या और जन स्वास्थ्य के क्षेत्रों में विकास संबंधी सूचना और जनकारी उपलब्ध कराने के साथ साथ ज्ञान देने और उन्हें संबंधित मुद्दों पर परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रवृत्त किया जा सके।

संसद सदस्यों हेतु व्याख्यान माला

माननीय अध्यक्ष महोदय की सलाह पर नियमित प्रशिक्षण पाठय़क्रम का आयोज करने के अलावा संसदीय अध्ययन तथा प्रशिक्षण ब्यूरो ने विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर 2005 में संसद सदस्यों के लिए व्याख्यान माला आरंभ की है जिनमें सुश्री सुनीता नारायण, निदेशक, सीएसई द्वारा "जल संरक्षण" (17 अगस्त, 2005) माननीय वित्त मंत्री के सलाहकार डा. पार्थासारथी शोम द्वारा "मूल्य संवर्द्धित कर प्रणाली बनाने की आवश्यकता" (24 अगस्त 2005), सुश्री एन वेनमन, कार्यकारी निदेशक, यूनीसेफ द्वारा "बाल विकास के क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियां,(9 दिसम्बर 2005) श्रीमती अरूणा राय द्वारा "ग्रामीण विकास हेतु माध्यम के रूप में सूचना के अधिकार (15 दिसम्बर 2005), प्रो. जैफ्री डी. शैस, निदेशक अर्थ इंस्टीटय़ूट कोलांविया विश्वविद्यालय न्यूयार्क, अमेरिका द्वारा "सहस्रशब्दी विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भारत के समक्ष चुनौतियां (3 अगस्त 2006), प्रो. इफरान हबीब, प्रोफेसर और इतिहास विभाग के अध्यक्ष (सेवानिवृत), अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय द्वारा "1857 के विद्रोह के परिप्रेक्ष्य (9 मई 2007) ", श्री पी. साईनाथ, ग्रामीण संपादक, द हिन्दू द्वारा "कृषि संकटः पिछले दशक के दौरान एक लाख से भी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या क्यों की ? (6 सितम्बर 2007)" शामिल हैं।

परामर्शी कार्य

मानीय अध्यक्ष महोदय महत्वपूर्ण नीति गत और कार्यक्रम संबंधी मुद्दों पर विशेषज्ञों की राय लेने के लिए नियमित रूप से विशेषज्ञों से परामर्श करते हैं। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मध्य शक्तियों के प्रथक्करण जैसे महत्वपूर्ण संसदीय मुद्दों पर विस्तृत चर्चा आरंभ की गयी है।

संसदीय ग्रंथागार तक अधिकाधिक लोगों की पहुंच बढ़ाना

अब तक संसदीय ग्रंथागार के पुस्तकों और पत्रिकाओं के समृद्ध संग्रह का लाभ संसद सदस्य ही उठा पाते थे परंतु माननीय अध्यक्ष की पहल पर ग्रंथागार के द्वारा प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के अनुसंधान अध्येताओं तथा पत्र सूचना कार्यालय द्वारा प्राधिकृत पत्रकारों और सरकारी अधिकारियों के लिए भी खोल दिए गए हैं।

बाल कक्ष

श्री चटर्जी ने बच्चों में अच्छी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालने और इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से और उनके साथ संसदीय ग्रंथागार संग्रहालय और अभिलेखों के संसाधनों को बांटने के लिए सुसज्जित रंग बिरंगे और अत्याधुनिक बाल कक्ष की स्थापना करने की पहल की है।

अन्य महत्वपूर्ण घटनाएं

माननीय अध्यक्ष महोदय, लोक सभा की पहल पर भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम की 150वीं वर्षगांठ मनाने के लिए संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभिन्न गणमान्य और ख्यातिलब्ध कलाकार उपस्थित थे। श्री चटर्जी ने संसद में संसद सदस्यों और बच्चों द्वारा किए गए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कराने में अत्यंत रूचि ली। स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ की अवसर पर संसद के केंद्रीय कक्ष में एक विशेष कार्यक्रम का भी आयोजना किया गया।

श्री सोमनाथ चटर्जी, एक बहुआयामी व्यक्तित्व

श्री चटर्जी का व्यक्तित्व बहुआयामी है उनकी शिक्षा खेलकूद और संसदीय अध्ययन में रूचि है। वह हर अर्थ में आम जनता से जुड़े हुए व्यक्ति हैं। वे सुदृढ़ वैचारिक आधार वाले एक आधुनिक व्यक्ति हैं परंतु कहीं न कहीं वे उदारवाद से भी मजबूती से जुड़े हुए हैं। उनमें राजनीतिक विभाजन से ऊपर उठने की अदभुत क्षमता के साथ साथ भारत के लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति अडिग प्रतिबद्धता भी है। वे उद्योग और कृषि, दोनों ही क्षेत्रों को समान महत्व देने में विश्वास करते हैं और दोनों ही की उन्नति के लिए भरसक प्रयास करते रहे हैं। वे एक दशक से भी ज्यादा समय तक पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम के अध्यक्ष रहे और पश्चिम बंगाल राज्य में निवेश को बढावा देने के लिए उन्होंने कई राष्ट्रों की यात्रा की।

श्री चटर्जी अनेकानेक सामाजिक सांस्कृतिक, शैक्षणिक और व्यवसायिक संस्थाओं तथा व्यापार संघों से सक्रिय रूप से जुडे हुए हैं। इन संगठनों के माध्यम से वे वंचित और पददलित लोगों के उत्थान और साक्षरता अभियान जैसे साकारात्मक कार्यकलापों से जुडे हुए हैं। वे खेलकूद के प्रति अति उत्साही हैं और खेलकूद प्रतिस्पर्धाएं देखना पसंद करते हैं। वे कई खेलकूद संगठनों से जुडे हुए हैं। वे मोहन बगान, द क्रिकेट एशोसिएशन आफ बंगाल, द बंगाल टेबल टेनिस एशोसिएशन आदि की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं।

श्री सोमनाथ चटर्जी 1971 से लोक सभा के सदस्य के रूप में संसदविदों के लिए आदर्श रहे हैं। वे एक अत्यंत प्रतिष्ठित अधिवक्ता, व्यापार संघवादी, स्पष्टवादी और प्रभावशाली संसदविद और कद्दावर नेता रहे और अब विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के अध्यक्ष हैं। उनका रिकार्ड तोड़ना बहुत दुष्कर होगा। अपने पूरे सार्वजनिक जीवन के दौरान वे हमारे लोगों में लोकतंत्र की संस्था के प्रति आदर की भावना जागृत करते रहे हैं और इस प्रकार से लोकतंत्र में लोगों का विश्वास बनाए हुए हैं। व्यवस्था में खामियों के कारण आम लोगों के मोहभंग से भलीभांति परिचित होने के कारण वे उन खामियों को दूर करना चाहते हैं। अतएव वे लोगों में व्यवस्था के प्रति बढती जा रही कटुता के बारे में संसद को निरंतर अहसास कराते रहे हैं और यह बताते रहे हैं कि यदि व्यवस्था में सुधारात्मक उपाय नहीं किए जाएंगे तो लोगों का विश्वास शासन की प्रणाली के रूप में संसदीय लोकतंत्र की क्षमता से उठ जाएगा। श्री चटर्जी लोक सभा के कार्यकरण में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने का भरसक प्रयास कर रहे हें ताकि वे लोक सभा को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे ऊंचे मंच के रूप में पुनः स्थापित कर सकें।


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