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विधेयक अधिनियम कैसे बनता है

विधेयक किसी विधायी प्रस्ताव का प्रारूप होता है। अधिनियम बनने से पूर्व विधेयक को कई प्रक्रमों से गुजरना पड़ता है।

प्रथम वाचन

विधान संबंधी प्रक्रिया विधेयक के संसद की किसी भी सभा - लोक सभा अथवा राज्य सभा में पुरःस्थापित किये जाने से आरम्भ होती हैं। विधेयक किसी मंत्री या किसी गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुरःस्थापित किया जा सकता है। मंत्री द्वारा पुरःस्थापित किये जाने पर विधेयक सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुरःस्थापित किये जाने पर गैर-सरकारी विधेयक कहलता है।

विधेयक के प्रभारी सदस्य के लिए विधेयक को पुरःस्थापित करने हेतु सभा की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। यदि सभा विधेयक को पुरःस्थापित करने की अनुमति दे दे तो विधेयक पुरःस्थापित किया जा सकता है। यह प्रक्रम विधेयक का प्रथम वाचन कहलता है। यदि किसी विधेयक को पुरःस्थापित करने की अनुमति के प्रस्ताव का विरोध किया जाता है तो अध्यक्ष अपने विवेकानुसार, विधेयक के प्रस्ताव का विरोध करने वाले सदस्य को और प्रस्ताव प्रस्तुत करने वाले सदस्य को स्पष्टीकरण के लिए संक्षिप्त वक्तव्य देने की अनुमति दे सकता है। जब विधेयक को पुरःस्थापित करने की अनुमति का इस आधार पर विरोध किया जाये कि विधेयक ऐसे विधान का सूत्रपात करता है जो सभा की विधायी शक्ति से परे है तो अध्यक्ष उस पर पूरी चर्चा की अनुमति दे सकता है। तत्पश्चात्, इस मामले को सभा के मतदान के लिए रखा जाता है। हालांकि किसी वित्त विधेयक या विनियोग विधेयक के पुरःस्थापन हेतु अनुमति के प्रस्ताव को उसी समय सभा के मतदान के लिए रखा जाता है।

राजपत्र में प्रकाशन

विधेयक पुरःस्थापित किये जाने के बाद राजपत्र में प्रकाशित कर दिया जाता है। कोई विधेयक अध्यक्ष की अनुमति से पुरःस्थापन से पूर्व भी राजपत्र में प्रकाशित किया जा सकता है।

ऐसे मामलों में विधेयक को सभा में पुरःस्थापित करने की अनुमति नहीं मांगी जाती है और विधेयक सीधे पुरःस्थापित कर दिया जाता है।

विधेयक का स्थायी समिति को भेजा जाना

किसी भी सभा में विधेयक पुरःस्थापित किये जाने के पश्चात् संबंधित सभा का पीठासीन अधिकारी जांच तथा प्रतिवेदन प्रस्तुत करने हेतु इसे संबंधित समिति को भेज सकता है।

यदि किसी विधेयक को स्थायी समिति को भेजा जाता है तो समिति उस विधेयक के आम सिद्धांतों और खण्डों पर विचार करेगी और उस पर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी। समिति संबंधित विषय पर विशेषज्ञ की राय अथवा विषय में अभिरूचि रखने वाले लोगों की राय भी ले सकती है। विधेयक पर इस प्रकार से विचार किए जाने के पश्चात् समिति सभा को अपना प्रतिवेदन सौंपती है। समिति के प्रतिवेदन का स्वरूप प्रत्ययकारी होने के कारण उसे समितियों के सुविचारित परामर्श के रूप में लिया जाता है।

द्वितीय वाचन

द्वितीय वाचन को विधेयक के दो प्रक्रमों में बांटा जा सकता है।

पहला प्रक्रमः पहले प्रक्रम में विधेयक पर सामान्य चर्चा होती है जब विधेयक के सिद्धान्तों पर चर्चा की जाती है। इस प्रक्रम में सभा विधेयक को सभा की प्रवर समिति या दोनों सभाओं की संयुक्त समिति को सौंप सकती है अथवा उस पर राय जानने के लिए उसे परिचालित कर सकती है या उस पर सीधे ही विचार कर सकती है।

यदि कोई विधेयक प्रवर/संयुक्त समिति को सौंपा जाता है तो समिति सभा के समान विधेयक पर खण्डवार विचार करती है। समिति के सदस्य विभिन्न खण्डों पर संशोधन प्रस्तुत कर सकते हैं। समिति उस विधान में दिलचस्पी लेने वाले संगठनों, सार्वजनिक निकायों अथवा विशेषज्ञों का साक्ष्य भी ले सकती है। विधेयक पर इस प्रकार विचार किये जाने के बाद समिति अपना प्रतिवेदन सभा को प्रस्तुत करती है जो समिति द्वारा यथा प्रतिवेदित विधेयक पर पुनः विचार करती है। यदि किसी विधेयक को उस पर राय जानने के लिए परिचालित किया जाता है तो ऐसी राय राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के माध्यम से प्राप्त की जाती है। इस प्रकार से प्राप्त राय को सभा पटल पर रखा जाता है। तत्पश्चात् विधेयक के बारे में अगला प्रस्ताव उसे प्रवर/संयुक्त समिति को भेजने के लिए होना चाहिए। इस चरण में विधेयक पर विचार करने का प्रस्ताव प्रस्तुत करना साधारणतः अनुमन्य नहीं होता।

दूसरा प्रक्रमः द्वितीय वाचन के दूसरे प्रक्रम में विधेयक (या प्रवर/संयुक्त समिति द्वारा यथा प्रतिवेदित रूप में विधेयक, जैसी भी स्थिति हो) पर खण्डवार विचार किया जाता है।

विधेयक के प्रत्येक खण्ड पर चर्चा होती है और इस प्रक्रम में खण्डों पर संशोधन प्रस्तुत किए जाते हैं। किसी खंड पर प्रस्तुत किए गए परन्तु वापस नहीं लिए गए संशोधनों को सभा द्वारा संबंधित खंड का निपटान किए जाने से पहले सभा में मतदान के लिए रखा जाता है। सभा में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों द्वारा बहुमत से स्वीकार करने के पश्चात् संशोधन विधेयक का अंग बन जाते हैं। खंडों के पश्चात् अनुसूचियां यदि कोई हों तो, खण्ड 1, अधिनियमन सूत्र तथा विधेयक का पूरा नाम सभा द्वारा स्वीकृत करने के पश्चात् विधेयक का द्वितीय वाचन पूरा हो जाता है।

 तृतीय वाचन

इसके पश्चात् प्रभारी सदस्य यह प्रस्ताव कर सकता है कि विधेयक पारित किया जाये। यह विधेयक का तृतीय वाचन कहलाता है। इस प्रक्रम पर वाद-विवाद विधेयक के समर्थन या अस्वीकृति के लिए दिये गये तर्कों तक ही सीमित रहता है और विधेयक के ब्यौरों का उतना ही उल्लेख किया जाता है जितना कि नितान्त आवश्यक हो। इस प्रक्रम में केवल औपचारिक, शाब्दिक अथवा पारिणामिक संशोधन ही गृहीत किये जाते हैं। किसी सामान्य विधेयक को पारित करने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का केवल साधारण बहुमत आवश्यक होता है। किन्तु संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक के लिए सभा की समस्त सदस्य-संख्या के बहुमत तथा प्रत्येक सभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई से अन्यून बहुमत की आवश्यकता होती है।

अन्य सभा में विधेयक

एक सभा द्वारा विधेयक पारित कर दिए जाने के बाद इसे सहमति प्रदान करने के संदेश के साथ दूसरी सभा को भेजा जाता है और वहां भी उसे पुरःस्थापन के चरण को छोड़कर उपरोक्त सभी चरणों से गुजरना पड़ता है।

धन विधेयक

जिन विधेयकों में विशेष रूप से करों के अधिरोपण तथा उत्सादन, संचित निधि में से धन के विनियोग आदि से संबंधित प्रावधान होते हैं, उन्हें धन विधेयक कहा जाता है। धन विधेयक केवल लोक सभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। राज्य सभा, लोक द्वारा पारित धन विधेयक में संशोधन कर उसे वापस नहीं भेज सकती। यद्यपि, यह धन विधेयक में संशोधन की सिफारिश कर सकती है, परन्तु उसे प्राप्ति की तिथि से चौदह दिन के भीतर सभी धन विधेयक लोक सभा को लौटाने होते हैं। धन विधेयक के संबंध में राज्य सभा की किसी सिफारिश अथवा सभी सिफारिशों को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करना लोक सभा पर निर्भर करता है। यदि लोक सभा, राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकृत करती है तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिफारिश किये गये संशोधनों और लोक सभा द्वारा स्वीकृत रूप में संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित समझा जाता है। यदि लोक सभा, राज्य सभा द्वारा सिफारिश किये गये संशोधनों में से किसी को स्वीकार नहीं करती, तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिफारिश किये गये किन्हीं संशोधनों के बिना लोक सभा द्वारा पारित रूप में संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित समझा जाता है। यदि लोक सभा द्वारा पारित धन विधेयक राज्य सभा की सिफारिशों के लिए उसके पास भेजा जाता है और यदि राज्य सभा चौदह दिन की निर्धारित अवधि के भीतर धन विधेयक नहीं लौटाती तो विधेयक उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् संसद की दोनों सभाओं द्वारा लोक सभा द्वारा पारित रूप में पारित समझा जाता है।

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