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संसदीय रिर्पोटिंग की कहानी

संसद के दोनों सदनों का एक आम दृश्य यह है कि सादा पोशाक पहने कुछ व्यक्ति सेन्ट्रल टेबल की तरफ द्रुत गति से लेकिन सतर्कतापूर्व आकर अपना स्थान ग्रहण करते हैं, थोड़ी देर तक अपने नोटबुक में कुछ लिखते हैं और फिर जिस तेजी से और निर्बाध रूप से उनका प्रवेश हुआ था, उसी ढंग से बाहर चले जाते हैं ।

बहुत ही कम लोग जानते हैं कि हमेशा जल्दबाजी में दिखने वाले ये लोग कौन हैं तथा उनका बराबर सदन में आते-जाते रहने का कारण क्या है ।

वे संसदीय रिपोर्ट्स हैं जो विचार-विमर्श हेतु देश के सर्वोच्च विधायी निकाय में सम्पन्न होने वाले कार्यों का संपूर्ण एवं प्रामाणिक रिकार्ड तैयार करने का महत्वपूर्ण कार्य का निवर्हण करते हैं ।

रिपोर्टिंगः एक अनिवार्य आवश्यकता

प्रक्रिया नियमों के अनुसार महासचिव से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सदन के प्रत्येक बैठक की कार्यवाही की पूरी रिपोर्ट तैयार करने की व्यवस्था करें । तदनुसार, लोक सभा तथा राज्य सभा में बोले जाने वाले हर शब्द, प्रत्येक प्रश्न, टिप्पणी और भाषण का संसदीय रिपोर्ट्स द्वारा जो आशुलिपि लेखन में चरम दक्षता का प्रतिनिधित्व करते हैं, अत्यंत सतर्कता और सटीक ढंग से रिकार्ड किया जाता है । तथापि, कुछ शब्द अथवा अभिव्यक्तियाँ जिन्हें कार्यवाही वृत्तांत से विशेष रूप से निकाला गया हो अथवा अध्यक्ष अथवा पीठासीन अधिकारी द्वारा रिकार्ड न करने का आदेश दिया गया हो, रिकार्ड का हिस्सा नहीं बनाया जाता है ।

दिन की संपूर्ण कार्यवाही जो दो सौ से ज्यादा पृष्ठों में समाविष्ट होती है, को अगले सुबह तक संपादित तथा संकलित कर उपलब्ध कराया जाता है । इस उल्लेखनीय कार्य को परिपूर्णता के साथ उच्च पेशेवर दक्षता, श्रेष्ठतम सहयोग तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी का सहारा लेते हुए सम्पन्न किया जाता है

रिपोर्टिंग की उत्पत्ति

अपने वर्तमान शब्दशः रूप में पहुँचने के पहले, संसदीय रिपोर्टिंग का तौर-तरीका परिवर्तन के कई दौरों से गुज़र चुका है । प्रारंभ में अर्थात सन् 1777 से 1835 तक जब विधायिका, कार्यपालिका के एक भाग के रूप में कार्य करती थी, तत्कालीन काउंसिल ऑफ द गवर्नर जनरल ऑफ इण्डिया जो अनन्य रूप से कानूनी मामलों का निपटान करता था, की कार्यवाहियों का रिकार्ड ईस्ट इण्डिया कंपनी के राजस्व विभाग द्वारा तैयार किया जाता था । वर्ष 1835 में विधायी कार्य से संबंधित कार्यवाही का कार्यवाही सारांश के रूप में अलग से रिकार्ड तैयार किया जाने लगा, जिसमें काउंसिल द्वारा विचार-विमर्श किए गए विधानों के केवल शीर्षक का उल्लेख होता था । तथापि, वर्ष 1860 से भारत सरकार के राजपत्र में काउंसिल में निष्पादित विधायी कार्यों का संक्षिप्त उल्लेख शामिल किया जाने लगा था ।

वर्ष 1854 में जब तत्कालीन विधायी काउंसिल की कार्यवाही को बाहर वालों के लिए खोल दिया गया, तब प्रकाशन के लिए उसकी कार्यवाहियों की एक प्रामाणिक रिपोर्ट जारी करने का निर्णय लिया गया । यह स्पष्ट है कि काउंसिल के सचिव जिन्हें रिपोर्ट तैयार करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया था, को आशुलिपिकों की मदद के बगैर, लगातार धारा प्रवाह बोलने वाले सदस्यों के भाषण को उसी गति से रिकार्ड करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । 16 मार्च, 1864 से प्रकाशित की जाने वाली कार्यवाही के सारांशों के अलावा कार्यवाही के भाग प्रत्यक्ष कथन शैली रूप में, संक्षेप में, प्रकाशित होने लगे ।

रिपोर्टर का प्रवेश

सारांश की बजाय, कार्यवाही की पूर्ण रिपोर्ट तैयार करने की व्यवस्था करने हेतु संबंधित नियमों का वर्ष 1897 में संशोधन किया गया । रिपोर्ट तैयार करने का दायित्व सचिव से हटकर हाई स्पीड आशुलिपिक अथवा रिपोर्टरों के कंधों पर चला गया । परिणामस्वरूप, सारांश लेखन को बंद कर दिया गया और शब्दशः रिपोर्टें जारी की जाने लगीं तथा उसे राजपत्र में भी प्रकाशित किया जाने लगा । तब कार्यवाही में सदस्यों की वैयक्तिक शैली प्रतिबिम्बित होती थी जिससे आधुनिक शब्दशः रिपोर्ट की प्रामाणिकता तथा जीवंतता का आभास मिलता था । वर्ष 1892 में प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया जिससे रिपोर्टों को जीवंतता तथा पठनीयता प्राप्त हुई । चूंकि वर्ष 1920 में, भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अंतर्गत पहला द्विसदनी विधायिका शीघ्र ही अस्तित्व में आने वाली थी, इसलिए इसकी कार्यवाही को पृथक पुस्तक रूप में प्रकाशित किए जाने के प्रस्ताव पर विचार किया गया । यह सोचा गया कि लोकप्रिय विधान मंडल की कार्यवाही की मांग अधिक रहेगी और इसलिए यह निर्णय लिया गया कि इसे जनसाधारण को बिक्री के लिए उपलब्ध कराने हेतु इसे पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जाए । साथ ही, इसके शीर्षक को "कार्यवाही" से बदलकर "वाद-विवाद " करने का भी निर्णय लिया गया । आज लोक सभा का आधिकारिक प्रतिवेदन "लोक सभा वाद-विवाद" के नाम से जारी किया जाता है ।

कार्य और इसकी आवश्यकताएं

संसद में रिर्पोटिंग गहन/ज्ञानाधारित अतिविशिष्ट कार्य हो जो भारी दबाव में नियत समयसीमा के भीतर पूरा किया जाता है और बिना किसी अन्तराल के लम्बे समय तक अनवरत जारी रहता है । रिपोर्टिंग के दोहरे कार्य अर्थात् तेज गति बनाए रखते हुए शार्टहैंड में लिखने और शार्टहैंड नोट को लिप्यंतरित करने के लिए पूर्ण एकाग्रता और बौद्धिक प्रयास अपेक्षित होता है । यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि शारीरिक क्षमता, मानसिक जागरूकता और तीव्र प्रतिक्रियाएं रिपोर्टर के कार्य की अनिवार्य आवश्यकताए हैं जिनके बिना वह ऐसी स्थितियों से नहीं निपट सकता, जो प्रायः प्रश्न काल की समाप्ति के तत्काल पश्चात् सभा में देखी जाती है । सांख्यिकीय विश्लेषण से पता चलता है कि लोक सभा के अधिकांश सदस्य 120 से लेकर 150 शब्द प्रति मिनट की गति से बोलते हैं, कुछ सदस्य तो 180 शब्द प्रति मिनट की गति तक चले जाते हैं और कुछेक 180 से 200 शब्द प्रति मिनट की गति तक पहुँच जाते हैं । इसलिए रिपोर्टरों की शार्टहैंड में गति 180-200 शब्द प्रति मिनट होनी चाहिए और उन्हें व्यापक भाषा बोध होना चाहिए तथा उनका सामान्य ज्ञान विश्वकोष स्तरीय होना चाहिए ताकि वे आत्मविश्वास के साथ अपना कर्त्तव्य पालन कर सकें ।

कार्यरत रिपोर्टर

रिपोर्टर सभा की कार्यवाही को बारी-बारी से पाँच-पाँच मिनट अकेले दर्ज करते हैं । यह चक्र सभा के प्रारंभ से स्थगन तक पूरे दिन जारी रहता है । चूंकि, सामान्यतया सभा की भाषा अंग्रेजी या हिंदी होती है इसलिए अंग्रेजी रिपोर्टर और हिंदी रिपोर्टर सभा की कार्यवाही लिखने के लिए हमेशा सभा में तैनात रहते हैं । तथापि, यदि कोई सदस्य क्षेत्रीय भाषा में बोलता है तो भाषण या टिप्पणियों का अंग्रेजी अनुवाद आधिकारिक रिपोर्ट में शामिल किया जाता है । प्रश्न काल संसद के कार्य संचालन के सर्वाधिक रोचक कार्यों में से एक है; लेकिन प्रश्न काल की कार्यवाही दर्ज करने में सर्वाधिक अनुभवी रिपोर्टर की क्षमता की भी परीक्षा होती है । प्रश्न व्यापक प्रकार के विषयों से संबंधित होते हैं और इसके क्षेत्र और विस्तार की कोई सीमा नहीं होती । अनुपूरक प्रश्न सभा के विभिन्न अंगों से पूछे जाते हैं और अति शीघ्र क्रम में उनके उत्तर दिए जाते हैं । रिपोर्टरों को न केवल प्रश्न पूछने वाले सदस्यों को और उत्तर देने वाले मंत्रियों को सही-सही पहचानना होता है बल्कि कहे गए प्रत्येक शब्द को रिकार्ड करना होता है, जिसमें अक्सर तेजी-से उद्धृत आंकड़ों, नामों, और नए तकनीकी शब्द सम्मिलित होते हैं । फिर भी, रिपोर्टर समय की मांग पर हमेशा खरे उतरते हैं और त्रुटिहीन लिप्यंतरण प्रस्तुत करते हैं । सभा में अपनी बारी आने पर प्रत्येक रिपोर्टर अपने शार्टहैंड नोट को पढ़ता है और आवश्यक होने पर टेप-रिकार्ड हुए पाठ से उसकी जांच करता है ताकि कार्यवाही की सटीक प्रस्तुतीकरण सुनिश्चित हो सके । अंग्रेजी और हिंदी रिपोर्टर पूरे तालमेल से कार्य करते हैं और अपने शार्टहैंड नोट का लिप्यंतरण शुरू करने से पहले अपने-अपने अंश को सही क्रम में जोड़ने के लिए अनिवार्य रूप से उनका सटीक क्रम बिठा लेते हैं ।

आधिकारिक रिपोर्ट का संकलन

वर्ष 1990 के पूर्वार्द्ध तक रिर्पोटर कार्यवाही का लिप्यंतरण स्टेंसिलों पर किया करते थे जिनसे साइक्लोस्टाइल करके इनकी प्रतियां तैयार की जाती थीं । वर्ष 1993 के मानसून सत्र से रिपोर्टर शाखा में कंप्यूटर लगा दिए गए । तभी से कार्यवाही के लिप्यंतरण और संकलन की पूरी प्रक्रिया पूर्णतः कंप्यूटरीकृत हो गई है, और कार्यवाही को भारत की संसद की आधिकारिक वेबसाइट (एचटीटीपी//पार्लियामेंटऑफइंडिया.िनक.इन) पर भी डाल दिया जाता है । आधिकारिक रिपोर्ट तैयार करना एक जटिल कार्य है जिसके लिए परिशुद्धता और गति दोनों अपेक्षित हैं । जैसे ही रिपोर्टर अपना लिप्यंतरण तैयार कर लेते हैं; वे प्रारूप प्रिंट आउट मुख्य संसदीय रिपोर्टर को सौंप देते हैं । मुख्य संसदीय रिपोर्टर, पर्यवेक्षी वरिष्ठ संसदीय रिपोर्टरों की सहायता से ध्यानपूर्वक लिप्यंतरणों की जांच करता है, उनकी क्रमबद्धता देखता है, पाठ का सत्यापन करता है और साथ ही प्रस्तावों, खण्डों और संशोधनों आदि का निपटान करता है, आवश्यक संपादन तथा शुद्धियां करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कार्यवाही का हर अंश विहित प्ररूप व प्रक्रिया के अनुरूप है । "गुणवत्ता नियंत्रण" के इस बड़े कार्य का उद्देश्य आधिकारिक रिपोर्ट को पूरी तरह त्रुटिहीन बनाना होता है । जब सभी लिप्यंतरणों को जांच लेने व अंतिम रूप से उन्हें अनुमोदित कर दिए जाने पर उन्हें मिला दिया जाता है और पृष्ठ संख्या डालकर पूरे दिन की बैठक की कार्यवाही का उनका एक वृहद्, तारतम्यपूर्ण और तथ्यपरक क्रमिक रूप तैयार कर लिया जाता है । तत्पश्चात्, अनुक्रमिणका सहित इस संकलन को मल्टीग्राफिंग और वितरण के लिए भेज दिया जाता है । मल्टीग्राफित वाद-विवादों की प्रतियां लोक सभा सचिवालय की विभिन्न शाखाओं और साथ ही साथ संबंधित मंत्रालयों को भी संदर्भ के लिए उपलब्ध कर दी जाती हैं । कुछ प्रतियां सदस्यों की सुविधा के लिए ग्रंथालय में भी रखी जाती हैं । दिए गए प्रत्येक भाषण, पूछे गए प्रश्न और किसी सदस्य द्वारा किए गए व्यवधान के लिप्यंतरण को पुष्टि या अशुद्धियों, यदि कोई हो, की शुद्धि के लिए संबंधित सदस्य को भेजा जाता है ।

शब्दशः रिपोर्ट : एक महत्वपूर्ण दस्तावेज

संसद की कार्यवाही की शब्दशः रिपोर्टें, प्रश्नों, स्थगन प्रस्तावों, विधेयकों और संकल्पों आदि का वर्णन मात्र नहीं होतीं । वस्तुतः, वे समकालीन इतिहास का प्रमुख स्रोत होती हैं । वे एक नागरिक के जीवन से जुड़े सभी मसलों के बारे मे विस्तृत जानकारी देती हैं । वे देश के दूरस्थ भागों तक की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को प्रकाश में लाती हैं । साथ ही, वे राष्ट्र के निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से राष्ट्र की आशाओं, आकांक्षाओं, चिंताओं और शंकाओं के दर्पण के रूप में भी कार्य करती हैं ।

"लोक सभा वाद-विवाद" नामक शब्दशः रिपोर्ट दो भागों में जारी की जाती है भाग-एक में प्रश्न और उत्तर तथा भाग-दो में शेष कार्यवाही होती है । इसका मुद्रित पाठ बैठक की तारीख से लगभग दो माह पश्चात् उपलब्ध होता है । इसकी प्रतियां लोक सभा सचिवालय के बिक्री अनुभाग या सरकारी प्रकाशनों के अधिकृत एजेंटों से धन के भुगतान पर प्राप्त की जा सकती है ।

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