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शिवराज वि. पाटील

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श्री शिवराज विश्वनाथ पाटील सर्वसम्मति से दसवीं लोक सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे जिसका गौरव बहुत कम लोगों को ही प्राप्त हुआ है। अपने उदार दृष्टिकोण, सौम्य स्वभाव और अनुकरणीय धैर्य व सदैव निष्पक्षता बरतने के गुण के कारण सभा की कार्यवाहियों को चलाने में वह उत्कृष्ट संचालक साबित हुए। पीठासीन अधिकारी के रूप में उन्होंने कई निर्णय दिए जोकि अपनी विषयवस्तु और महत्व, दोनों ही दृष्टि से हमारे संसदीय इतिहास में मील के पत्थर साबित होंगे।

शिवराज वि. पाटील का जन्म 12 अक्तूबर, 1935 को महाराष्ट्र राज्य के लातूर जिले के चाकूर गांव में हुआ था। उन्होंने ओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय में विधि का अध्ययन किया। विधि में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के बाद, पाटील ने प्राध्यापक के रूप में जीवन शुरू किया और लगभग छः महीने तक अध्यापन कार्य किया। उसके बाद उन्होंने अपने गृह-नगर लातूर में वकालत शुरू करने का निर्णय किया। कुछ ही दिनों बाद उनका ध्यान सार्वजनिक जीवन की ओर आकर्षित हुआ। वर्ष 1967 में, वह लातूर नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और 1969 तक इस पद पर बने रहे तथा 1971 से 1972 तक दोबारा इस पद पर रहे। लातूर नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप में पाटील ने नगरपालिका प्रशासन में, विशेषकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा, अस्पतालों तथा भूमिगत जल निकासी व्यवस्था, जल आपूर्ति योजनाओं एवं नगर आयोजना आदि के बारे में अनेक नवीनताओं का प्रवर्तन किया।

पाटील का विधायी और संसदीय जीवन, 1972 में उनके महाराष्ट्र विधान सभा के लिए निर्वाचित हो जाने के साथ ही शुरू हुआ। वह 1972 से 1977 तक और पुनः 1977 से 1979 तक राज्य विधान सभा के सदस्य रहे। वह 1974-75 के दौरान सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के सभापति रहे। पाटील 1975 में उप मंत्री बने और उनके पास विधि और न्याय, सिंचाई तथा नयाचार विभाग रहे और वह इस पद पर 1976 तक रहे। वह 5 जुलाई, 1977 को राज्य विधान सभा के उपाध्यक्ष निर्वाचित किए गए और 13 मार्च, 1978 तक इस पद पर बने रहे। उनकी ईमानदारी, विवादास्पद मामलों को निष्पक्षता से निपटाने और असीम धैर्य के लिए उनकी बहुत ही प्रशंसा की गई और 17 मार्च, 1978 को उन्हें सर्वसम्मति से महाराष्ट्र विधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया तथा वह 6 दिसम्बर, 1979 तक इस पद पर रहे।

पाटील पहली बार 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में लातूर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए। वह उसी निर्वाचन क्षेत्र से आठवीं, नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं लोक सभा में क्रमशः 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 में पुनर्निर्वाचित हुए।

पाटील 12 मई, 1980 से 7 सितम्बर, 1980 तक संसद सदस्यों के वेतन तथा भत्तों संबंधी संयुक्त समिति के सदस्य रहे और 8 सितम्बर, 1980 से 18 अक्तूबर, 1980 तक इस समिति के सभापति रहे।

इसके बाद वाले दशक में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 19 अक्तूबर, 1980 को पाटील केंद्रीय मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री बनाए गए और निम्नलिखित विभागों में रहे - रक्षा - 19 अक्तूबर, 1980 से 14 जनवरी, 1982 तक; वाणिज्य (स्वतंत्र प्रभार) - 15 जनवरी, 1982 से 29 जनवरी, 1983 तक; विज्ञान और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रानिकी, अंतरिक्ष और महासागर विकास, जैव- प्रौद्योगिकी - 29 जनवरी, 1983 से 21 अक्तूबर, 1986 तक; रक्षा उत्पादन और आपूर्ति - 22 अक्तूबर, 1986 से 24 जून, 1988 तक; और नागर विमानन और पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) - 25 जून, 1986 से 2 दिसम्बर, 1989 तक।

पाटील ने उन सभी विभागों में, जिनका कार्यभार उन्होंने संभाला, अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी। रक्षा राज्य मंत्री के रूप में पाटील अपने व्यापक और गहन अध्ययन के जरिए देश की रक्षा से संबंधित जटिल मुद्दों को भी शीघ्र समझ गए। उन्होंने नई प्रौद्योगिकी और आधुनिक उपकरणों तथा सुरक्षा बलों के लिए बेहतर सुविधाओं में निवेश के महत्व पर बल दिया। रक्षा मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने देश की सुरक्षा को महत्व देते हुए उपलब्ध धनराशि का इष्टतम उपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वाणिज्य मंत्री के रूप में उनकी सेवाएं एक बार फिर चुनौती भरी और रुचिकर थीं। उन्होंने न केवल नए बाजारों और निर्यात के लिए नए उत्पादों का पता लगाने एवं निर्यात प्रक्रियाओं के सरलीकरण पर बल दिया बल्कि इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पूर्ण समर्पण की भावना और निरंतर सतर्कता से कार्य किया।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रानिकी, अंतरिक्ष और महासागर विकास और जैव प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में भी पाटील ने अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी है। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि आठवीं लोक सभा में जब वह पुनः निर्वाचित हुए तो उन्हें फिर इन्हीं मंत्रालयों का कार्यभार सौंपा गया। अन्य बातों के साथ साथ उन्होंने इलेक्ट्रानिक उद्योग को मजबूत बनाने तथा उसका विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। कर्मठ और अध्यवसायी होने के साथ साथ विनम्रता और आत्मसंयम के गुणों से सम्पन्न पाटील ने कभी भी अनावश्यक सतही कार्य नहीं किया। बल्कि वह हमेशा किसी भी चीज को भली-भांति समझ कर उसकी गहराई में जाते थे और किसी भी क्षेत्र में नीतिगत निर्णय लेते समय उससे पूर्णतः अपने आपको सम्बद्ध कर लेते थे।

पाटील विकास और प्रौद्योगिकी के आयात से संबंधित मामलों में निर्णय लेने के लिए केंद्रीय सरकार, सरकारी क्षेत्र के एककों, गैर सरकारी क्षेत्रों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की सहायता के लिए गठित प्रौद्योगिकी नीति संबंधी समिति के सदस्य थे।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में प्राप्त अपने अनुभवों का पाटील ने रक्षा मंत्रालय में रक्षा उत्पादन और आपूर्ति राज्य मंत्री के रूप में बखूबी उपयोग किया।

वास्तव में, रक्षा राज्य मंत्री के रूप में उनके पूर्व अनुभव उनके लिए बहुत काम के सिद्ध हुए। अब तक वह राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं से, जो रक्षा संबंधी प्रौद्योगिकी का उत्पादन कर रही थीं, पूर्णतः परिचित हो गए थे। पाटील ने प्रशासन के आधुनिकीकरण, नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग और नई प्रौद्योगिकी का पता लगाने के अतिरिक्त उत्पादन कार्यक्षमता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए नवीनतम उपकरण लगाने पर विशेष बल दिया। साथ ही उन्होंने कर्मचारियों के कल्याण की योजनाओं को भी पर्याप्त महत्व दिया। उन्होंने हमेशा अनुभव किया कि "मशीन पर काम करने वाला कारीगर अधिक महत्वपूर्ण है।"

वर्ष 1989 के आम चुनावों में कांग्रेस लोक सभा में अकेले सबसे बड़े दल के रूप में उभरी किंतु उसे सरकार बनाने के लिए अपेक्षित बहुमत नहीं मिला। जनता दल ने भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से सरकार बनाई और कांग्रेस विपक्षी दल बना। विगत वर्षों में स्थापित परिपाटी के अनुसार सभा का उपाध्यक्ष विपक्ष से हुआ करता था। चूंकि महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में पाटील का रिकार्ड उत्कृष्ट रहा था अतः वह नौवीं लोक सभा के उपाध्यक्ष पद के लिए सभी सदस्यों की सर्वसम्मत पसंद बने। पाटील सदैव किसी भी विवाद से दूर रहे और इससे वह सत्तारूढ दल और विपक्ष दोनों के आदर के पात्र बने। उनके राजनीतिज्ञ साथी प्रायः उनके लिए एक शब्द "निष्पक्ष" का प्रयोग किया करते थे। पाटील मार्च, 1990 से मार्च 1991 तक उपाध्यक्ष रहे। इस अवधि के दौरान उन्होंने गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों और संकल्पों संबंधी समिति तथा ग्रंथालय समिति के सभापति के रूप में भी कार्य किया। वह मई, 1990 से सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति के सदस्य थे।

दो वर्षों से कम ही समय में देश में नई लोक सभा को चुनने के लिए पुनः चुनाव हुए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई। पाटील अध्यक्ष पद के लिए स्वाभाविक पसंद थे और उन्हें इस पद के लिए सर्वसम्मति से चुना गया। सभा के सभी वर्गों की यह सुविचारित राय थी कि पाटील इस सम्माननीय पद को अपने समृद्ध और विविध अनुभवों तथा परिपक्वता के गुणों से, जो एक पीठासीन अधिकारी में होने चाहिए, गरिमा प्रदान करेंगे।

संसदीय संस्थाओं को सुदृढ़ करने के प्रति पाटील की प्रतिबद्धता के बारे में सदस्यों, मीडिया या आम जनता, राज्यों के विधायी निकायों या अन्य देशों के संसदीय निकायों सभी को स्पष्टतः पता था। लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में पाटील का सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों समान रूप से आदर करते थे। ऐसे कई अवसर आए जब सभा में स्थिति तनावपूर्ण और हंगामेदार बनी किंतु अपने अनुकरणीय धैर्य और असाधारण सहनशीलता से वह तनाव और बोझिल वातावरण को दूर करने में बराबर सफल रहे। "बैंक घोटाला", "राजनीति का अपराधीकरण" जैसे कुछ विवादास्पद मुद्दों पर वाद-विववाद के दौरान उन्होंने जिस तरह सभा की कार्यवाही का संचालन किया उसकी विभिन्न क्षेत्रों में भूरि-भूरि प्रशंसा की गई।

अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उस समय एक इतिहास रचा गया जब लोक सभा में उच्चतम न्यायालय के एक तत्कालीन न्यायाधीश के विरूद्ध पहली बार महाभियोग के प्रस्ताव पर चर्चा की गई और बाद में उसे अस्वीकृत किया गया। चूंकि यह अपनी तरह का पहला और अत्यधिक महत्व का मामला था, अतः पाटील ने यह सुनिश्चित करने में विशेष सावधानी बरती कि प्रस्ताव पर विचार करने के लिए समुचित प्रक्रिया स्थापित की जाए और इस मुद्दे पर विभिन्न दलों और ग्रुपों के नेताओं के साथ परामर्श किया।

वर्ष 1993 में पाटील ने बीस सदस्यों के विरूद्ध अनर्हता के लिए प्रस्तुत याचिका से उत्पन्न मामलों के बारे में संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। उनका मानना था कि यह मामला बीस संसद सदस्यों की सदस्यता से संबंधित है जो दो करोड़ से अधिक भारतीय नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हें जनता द्वारा चुना गया है और जनता के प्रतिनिधि के रूप में उनसे जन आकांक्षाओं पर खरा उतरने की अपेक्षा की जाती है। अध्यक्ष पाटील ने इस बात पर बल दिया कि यदि दल-बदल की बुराई को नियंत्रित नहीं किया गया तो यह संसदीय और लोकतांत्रिक प्रणाली को नष्ट कर सकती है। उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि दसवीं अनुसूची ने काफी सीमा तक उस प्रयोजन को पूरा किया है जिसके लिए इसे बनाया गया है किंतु इसमें कुछ कमजोर बिंदु और त्रुटियां हैं। उन्होंने महसूस किया था कि कानून को और अधिक व्यापक बनाया जाना चाहिए ताकि इसमें उन संभावित परिस्थितियों का प्रावधान किया जा सके जो विधानमंडल के बाहर पार्टी गतिविधियों तथा ऐसे प्रश्न कि दल-बदल कानून एवं व्हिप लागू होने से संबंधित मामलों पर कौन निर्णय करेगा, जैसे मामलों की व्याख्या तथा प्रवर्तन करते समय उत्पन्न हो सकती हैं।

पाटील के विचारशील प्रयासों की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि उनके कार्यकाल के दौरान भारतीय संसद की समिति व्यवस्था का विकास है जिसका दूरगामी महत्व है। यद्यपि समिति व्यवस्था को आरंभ किए जाने का प्रस्ताव कई वर्षों से था और तीन विषय समितियों का आठवीं लोक सभा में गठन किया गया था, किंतु यह प्रयास तब फलीभूत हुए जब पाटील ने दसवीं लोक सभा में पहल की और पार्टी नेताओं, सदस्यों और अन्य से परिचर्चा कर योजना को प्रतिपादित किया। अन्ततः 31 मार्च, 1993 को विभागों से संबंधित संसद की 17 स्थायी समितियों का औपचारिक उद्घाटन किया गया। निस्संदेह यह संसद को और अधिक शक्तिशाली बनाने और कार्यपालिका पर संसद का कारगर रखने की दिशा में एक बहुत बड़ी पहल थी।

सदस्य के रूप में पाटील निर्वाचन क्षेत्र में लघु विकास कार्यों को पूरा करने की निर्वाचकों की मांगों से पूरी तरह से अवगत थे, जिनमें एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता थी। इसी कारण जब वह अध्यक्ष बने तब उन्होंने इस विषय को पूरे जोरदार ढंग से उठाया और संबंधित अधिकारियों के साथ इस मामले पर विचार किया। यह प्रयास दिसम्बर, 1993 में फलीभूत हुआ जब संसद में संसद सदस्य क्षेत्रीय विकास योजना की घोषणा की गई। इस योजना के तहत, प्रत्येक सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक करोड़ रुपये प्रति वर्ष तक की धनराशि के कार्यों के लिए जिलाधीश को सुझाव दे सकता है।

पाटील ने लोक सभा सचिवालय की संस्थागत व्यवस्थाओं के चल रहे कम्प्यूटरीकरण और आधुनिकीकरण प्रयासों पर, विशेषकर संसद सदस्यों की सूचना सेवा के कम्प्यूटरीकरण पर और बल दिया। उनके नेतृत्व में न केवल लोक सभा सचिवालय के अधिकांश कार्यकलापों का कम्प्यूटरीकरण किया गया अपितु सांसदों को निष्पक्ष, तथ्यपरक और विश्वसनीय एवं आधिकारिक आंकड़े लगातार और नियमित आधार पर प्रदान करने के लिए अनुक्रमणिका आधारित सूचना आंकड़ों का भी विकास किया गया।

सांसदों को अपने कर्तव्यों के प्रभावी ढंग से निर्वहन के लिए तत्काल और सारगर्भित सूचना की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, दसवीं लोक सभा के सदस्यों को विविध गतिविधियों की अद्यतन जानकारी तुंत प्राप्त करने, कार्यालय संबंधी उनकी गतिविधियों को व्यवस्थित करने, ई-मेल और फैक्स को प्राप्त करने/भेजने और उनके डेस्क पर ही विधायी और संसदीय मामलों की तुंत और सही सूचना को प्राप्त करने के लिए, नोट - बुक कम्प्यूटर दिए गए थे।

संसद को लोगों के करीब लाने के लिए लीक से हटकर एक अन्य पहल तब की गई जब संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित राष्ट्रपति के अभिभाषण का पहली बार 20 दिसम्बर, 1989 और फिर बाद में 1990 में सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया। यह पाटील ही थे, जिन्होंने पहली बार संसदीय कार्यवाही को प्रसारित करने के लिए सम्भाव्यता, तकनीकी व्यवहार्यता, कार्यविधि और उससे होने वाले लाभों के बारे में एक व्यापक प्रस्ताव विचारार्थ प्रस्तुत किया। दिनांक 25 अगस्त, 1994 से लोक सभा की कार्यवाही का एक कम शक्ति के ट्रांसमीटर द्वारा, संसद भवन की 15 किमी. की परिधि में सीधा प्रसारण किया जा रहा है तथा इसके अलावा पूरे देश में बारी बारी से एक एक सप्ताह संसद के दोनों सदनों के प्रश्नकाल की कार्यवाही का सीधा प्रसारण भी किया जा रहा है। इसी अवधि के दौरान सभा के महत्वपूर्ण वाद-विवादों का भी सीधा प्रसारण आरंभ किया गया। इसके अतिरिक्त, वर्ष 1992 के मानूसन सत्र से आकाशवाणी से प्रश्नकाल का प्रसारण भी आरंभ हो गया।

पाटील के कार्यकाल के दौरान संसदीय कार्यवाही को दूरदर्शन पर प्रसारित करने और संसदीय विषयों पर टेली फिल्मों के निर्माण के फलस्वरूप संसदीय कार्यवाही और अन्य संसदीय गतिविधियों के आधिकारिक श्रव्य-दृश्य रिकार्डों के संरक्षण और उनकी पुनःप्राप्ति के लिए संसद भवन में स्थापित श्रव्य-दृश्य एकक की भूमिका और बढ़ गई है।

सांसदों को उनके दायित्वों के प्रभावी निर्वहन हेतु समर्थ बनाने की दृष्टि से उन्हें पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराने की आवश्यकता के बारे मे कोई दो राय नहीं हो सकती हैं। संसद सदस्यों को दी जाने वाली सुविधाओं और पारिश्रमिक के संबंध में सुझाव देने के लिए अध्यक्ष पाटील की प्रेरणा से एक संयुक्त संसदीय समिति गठित की गई थी। संयुक्त समिति ने दैनिक भत्ते, टेलीफोन कॉल, जल तथा विद्युत प्रभारों, हवाई यात्रा इत्यादि के संबंध में संसद सदस्यों के लिए बेहतर सुख-सुविधाओं की सिफारिश की।

भारतीय संसदीय लोकतंत्र का इतिहास एक तरह से संसद भवन और उसके ऐतिहासिक केन्द्रीय कक्ष से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। संसद भवन के परिसर में हमारे इतिहास के महापुरुषों की मूर्तियां तथा प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हो गई हैं। संसद भवन का केन्द्रीय कक्ष ऐसे अनेक नेताओं के चित्रों से सुज्जित है जिन्होंने राष्ट्र के हित के लिए अतुलनीय योगदान दिया है। पाटील द्वारा की गई एक अन्य महत्वपूर्ण पहल के अंतर्गत महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, वल्लभ भाई पटेल, पंडित गोविन्द बल्लभ पंत, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी और अन्य नेताओं की प्रतिमाएं और चित्र लगाने से संबंधित प्रस्तावों का संसद परिसर में राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिमा और चित्र प्रतिष्ठापित करने संबंधी संसदीय समिति द्वारा अनुमोदन किया गया था। इस प्रकार इस अवधि में अनेक प्रतिमाओं एवं चित्रों का अनावरण किया गया था। जिन राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिमाएं संसद भवन के केन्दीय कक्ष को सुज्जित कर रही हैं, उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा उनके बलिदानों को भावभीनी श्रद्धांजलि देने के लिए समारोह आयोजित किए जाते हैं ताकि भारतवासी देश तथा उसकी जनता के कल्याण के लिए उनके द्वारा किए गए योगदान से प्रेरणा ले सकें।

पाटील की संसदीय प्रणाली को मजबूत करने की दृढ़ निश्चयी वचनबद्धता उस समय उजागर हुई जब भारतीय संसदीय दल द्वारा उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की स्थापना की गई। यह पुरस्कार संसदीय परम्पराओं को बनाए रखने में अपना योगदान देने के लिए उत्कृष्ट सांसद को प्रत्येक वर्ष प्रदान किया जाता है।

शांति तथा सहयोग के महान समर्थक पाटील ने अंतर-संसदीय संबंधों को बढ़ाने के महत्व का बार बार उल्लेख किया। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि अन्तर संसदीय सम्मेलनों और बैठकों में विश्व भर के सांसदों को एक ऐसा मंच उपलब्ध होता है जहां वे एक दूसरे के साथ द्विपक्षीय, बहुपक्षीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचारों और दृष्टिकोणों का आदान-प्रदान कर सकते हैं जिससे निश्चय ही पारस्परिक समझ एवं सहयोग के क्षेत्र का विस्तार करने में मदद मिलती है। अध्यक्ष पाटील के नेतृत्व में भारत को चार मुख्य अंतर्राष्ट्रीय संसदीय सम्मेलनों को आयोजित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआः (एक) सितम्बर, 1991 में 37वां राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन; (दो) अप्रैल, 1993 में 89 वां अन्तर-संसदीय सम्मेलन; (तीन) जनवरी, 1994 में छठी राष्ट्रमंडल संसदीय विचारगोष्ठी; और (चार) जुलाई 1995 में सार्क अध्यक्षों तथा सांसदों के संघ का प्रथम सम्मेलन। अन्तर-संसदीय सहयोग को मजबूत करने के साथ साथ इन सम्मेलनों में संसदीय लोकतंत्र के वृहत उद्देश्य को पूरा कर सकने वाले अनेक उपयोगी विचार सामने आए।

पाटील द्वारा की गई एक अन्य महत्वपूर्ण पहल संसदीय अभिरुचि के विषयों का मौलिक अध्ययन करने के लिए चुनिंदा शोधार्थियों को शोध-वृत्ति प्रदान करना थी। इस योजना के अंतर्गत लोक सभा सचिवालय प्रत्येक वर्ष निम्न वर्षों में से किसी एक पर दो शोध - वृत्तियां - एक हिन्दी के लिए और एक अंग्रेजी के लिए प्रदान करता है संसदीय संस्थाओं (राज्य विधान मंडल सहित) का उद्भव और विकास; संसदीय नियम, व्यवहार और प्रक्रियाएं; समिति प्रणाली; संसद और जनता के बीच संवाद; और संसद तथा अन्य विधायी संस्थाओं को आधुनिक तकनीक के माध्यम से सुविधाएं उपलब्ध कराना।

इस समय पाटील संसद के एक सक्रिय सदस्य के रूप में देश में चर्चा और विचार-विमर्श की इस सर्वोच्च संस्था में अपने सहयोगियों को अपने अनुभव और विशेषता का लाभ पहुंचा रहे हैं।

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